आज बड़ी दिन बाद बचते बचाते निकल आई धुप हमारे गलियारे में…और अजीब हरकत करने लगती हमारी कलम अचानक जैसे कोई छोटे बच्चे का हाथ पकड़ के कुछ लिखाना चाह रहा हो…!!
यादो के दरीचों से देखो आज
कैसे छन रही महीन किरने…!!
बयार भाग रही उरस के.
वादों से भरी अनसुलझी गुच्छी…!!
पक रहा कही डेऊढ़ी तक आ..
गयी किसीके अरमानो की महक…!!
आखों में चिपकाए ख्वाब आज..
ताप रहा चेहरा मधिम आंच पर…!!
जा पोछ ले लाल हो गया चेहरा फिर ..
पूछुंगा कितने अरमान ख़ाक किया…!!
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