Monthly Archive: February 2013
ठण्ड की वापसी….!!!
काफी दिनों बाद आज फिर कलम में रिफिल भरा दी…और टेस्ट चेक खातिर दुकान पर ही उतार दिया चंद अल्फाज…दुकानदार बाबू कह रहे थे राहुल ठण्ड गयी अब ऐश करो…हमने भी मुंडी हिला दिया…और छाप दिया कुछ पल दिमाग इतर बितर कर रहे थे…!!!!
वापसी की तैयारी में…
ठण्ड समेट रही संन्दूक…!!!
कुछ उधारी हैं…
कुछ बकाया भी…!!!
कोपले छुपाए बैठी हैं…
गौहर ओस के…!!!
बचाना कही रो ना दे..
वर्ना छींटा जाएंगे…!!!
लौटा सड़को के चश्मे
जिन्हें छीना था तूने…!!!
रूठे चाँद को भी मना…
तेरी करतूत से खफा हैं…!!!
धरा की भी सुन ले…
मफलर बाँध लेना…!!!
अब जा ट्रेन आ गयी …
वरना देरी हो जाएगी…!!!
ऑस्कर पिस्टोरियस” और “लांस आर्मस्ट्रांग”
ऑस्कर पिस्टोरियस” और “लांस आर्मस्ट्रांग” दोनों से हमारा काफी गहरा जुडाव था…दोनों खेल के रत्न थे…पर जिंदगी की कसौटी को खेल की बुनियाद कहा तक सम्हालेगी…!!!
आदर्श और उनके पदचिन्हों को पकड़ के चलने की परंपरा अब लगता हैं खत्म कर देनी चाहिए…जब आइकॉन ही ऐसे करतूत करेंगे तो…आम आदमी से क्या अपेक्षा की जाए…!!!
बड़ी भोर में अकेले निकल गया…
मैं भला आदमी ढूढने..!!!
कौन मदद करे मेरी…
सूरज आँख मीज रहा…
सितारे सामान सैन्हार रहे…!!!
कशिश…!!!
सूनी जिदगी बोझल होती….परछाई खोने का भी डर रहता…जाने और कितने डर रहते जेहन में कैद…कितनो को बतलाये…एक आकृति सजाने की कोशिश की हैं पकड़ लिए सूचित करियेगा…उसमे रंगों को भरवाना हैं…सूख गयी हैं उसे मुद्रक की स्याही…हमारे लिए तो अब केवल श्वेत श्याम तस्वीरे ही बनाता वो…कौन भरवाए उसकी “कार्ट्रिज में इंक”….!!!
शायद सुनसान सा कब्र खोद रहा था मैं…!!!
चेहरे पर चादर ओढ़कर सो रहा था मैं…!!!
ना जाने किसके पुराने बाँट जो रहा था मैं…!!!
उससे अपनी दामन भीगो रहा था मैं…!!!
फिर भी पंख उतार कर सो रहा था मैं…!!!
किसके पैरोंकी खनक को मसोश रहा था मैं…!!!
अकेली सांझ…!!!
हर सांझ की तन्हाई जाने कितने सवाल अपने अन्दर बसाए रहती….थोड़ी दूर चलते हम…और शायद गली ही रूठ जाती हमसे…रास्ते ही ना होते आगे के…!!!
बड़ी अकेली बैठी शाम का दस्तूर हो गया ,
नजरें थी पास पर वो दिल से दूर हो गया .. !!
वो चाँद भी हमारी पहुच से दूर हो गया .. !!
गुनाह किया कितने और वो बेकसूर हो गया .. !!
मोहरा आएने में झाकने को मजबूर हो गया .. !!
तेरा यार जो पास था वो कैसे दूर हो गया .. !!
पतझड़ के पत्ते
आज बसंत था…लोग उसको अपने कंधे पर बिठाए घूम रहे थे पर…किसी ने नहीं देखा उन सूखे पत्तो को…जीवन की आखिरी बात जो रहे थे…आज मन नहीं हो रहा था लिखने का…या सच कहूँ तो कुछ सूझ नहीं रहा था…तभी मैं गुजर रहा था और सुना कराह रहे उन पत्तो की चुर्र चुर्र…!!!
बिछा हूँ जमीन पर…
लोग चढ़े जा रहे…!!!
कराह से मेरी व्याकुल..
पक्षी भागे जा रहे…!!!
कौन उठाये मुझे…
इतनी फुर्सत हैं किसे…!!!
हड्डियाँ तोड़ के…
मुझे कोने जला रहे…!!!
सुबह नए बच्चे लिए…
पेड़ खिल खिलाएंगे…!!!
पर उनको भी तो इश्वर…
वही दिन दिखलाएँगे…!!!
इलाहबाद कुम्भ मेला…!!!!
त्रिवेणी के तट पर बैठा जाने कितने एहसास को अपने में लिए जा रहा हूँ…कुछ शाम की चमक हैं…साजो सजावट हैं…लोग हैं हाँ मुकुट धारी…!!!
फरवरी के चौदह तारीख…
उड़ेल रही अपनी चमक…!!!
बीहड़ो को काटते बड़ी मस्ती से…
बहती आ रही जमुना भी…
गले लगाने को आतुर संगम पर…!!!
पश्चिम की ओर बैठा सूरज…
मुहर लगा रहा सबके उपस्थिति की…!!!
कोई छुप के देख रहा बिना आये…
गंगा घुल रही जमुना में…!!!
सरस्वती मौन हैं साबुन लिए…
धुल रही सभी के पाप …!!!
नैनी का पुल भी पहन लिया…
नयी आवरण देख मटक रहा…!!!
अकबर का किला सब कुछ साक्षी हैं इन त्रिवेदियों की हर एक कल-कल का…पूछ लेना बाद में सब कुछ हु-ब-हु बताएगा ये….सच कह रहा आज याद आ गए कुछ और पंक्तियाँ…जन कवि कैलाश गौतम की…!!!
“याद किसी की मेरे संग वैसे ही रहती हैं…
जैसे कोई नदी किसी किले से सटकर बहती हैं…!!!”
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