Monthly Archive: March 2013
पता पूछती जिंदगी
जिंदगी मजिल का पता
पूछते बीत गयी…!!!
हर सुबह रोज निकलती
घर से ओढ ढांप के,
चौराहे पहुचते किसी
पनवडिये को देख गयी…!!!
चार तनहाइयों बाद
एक हलकी सी तबस्सुम,
ऐसी ही आवाज
मेरे कान को गूंज गयी…!!!
हमने भी देख लिया
खांचो में बसे अपने दर्द को,
बस एक बयार पुर्जा थामे
कई आसियाने लांघ गयी…!!!
किसको बतालाये आलम,
जल्दी-जल्दी में देख
बिना चाय पीये निकल गयी…!!!
~खामोशियाँ©
जिंदगी:एक भंवर….लेख…!!!
~खामोशियाँ©
खिड़कियाँ या सरहद…!!!
दीवाल पर सजी पोट्रेट…
बगल मँडराते झूमर…!!
एक ही कमरे मे कैद…
कितनी जीवंत वस्तुए…!!
कुर्सियाँ भी बिठाने को…
आतुर रहती अपने पे…!!
शायद हफ्तों मे भी…
कईयों की बारी ना आती…!!
पुरानी अल्मारियों मे
पैर जमाये बूढ़े धरौंदे…!!
चांदी की काटी पर झूलती…
काका की बनाई ऑयल पेंटिंग…!!
दोनों ओर खिड़कियाँ…
बिलकुल आमने सामने..!!
मानो मुह चिढ़ा रही…
देख एक दूसरे को…!!
पर ऐसा नहीं शायद…
क्या गज़ब तालमेल हैं…!!
एक की सवाल पर तुरंत
दुजी उत्तर थमाती…!!
कोई एक से देखता…
चलते फिरते मँडराते लोग…!!
तो दूसरी वीरानियों से…
मुखातिब करवा देती…!!
जैसे कमरा ना हो…
हो सरहद की लकीर…!!
दोनों ओर दो समुदाय…
और दोनों से बराबर प्रेम…!!
कई वर्षो की आहुती दी…
अब लोग कहते हटाओ..!!
तोड़ रहे लोग मेरा घर….
मिट रहा हैं मेरा वजूद…!!
हाँ लकीरें ही तो हैं…
पर अब मिट नहीं सकती…!!
पुरानी हो चुकी हैं…
मिटाने पर और गाढ़ी होंगी…!!
~खामोशियाँ©
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~खामोशियाँ©
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