किसी दर्द की सिरहाने से….
बड़ी चुपके से निकलती….
अधमने मन से
बढ़कर कलम पकड़ती…..!!!
कुछ पीले पत्र….
पर गोंजे गए शब्द….
कभी उछलकर रद्दी मे जाते….
कभी महफ़िलों मे रंग जमाते….!!
शायद ही कोई होता ….
जो बना पाता किसीके
“नज़्म का नक्शा”….!!!
किसी दर्द की सिरहाने से….
बड़ी चुपके से निकलती….
अधमने मन से
बढ़कर कलम पकड़ती…..!!!
कुछ पीले पत्र….
पर गोंजे गए शब्द….
कभी उछलकर रद्दी मे जाते….
कभी महफ़िलों मे रंग जमाते….!!
शायद ही कोई होता ….
जो बना पाता किसीके
“नज़्म का नक्शा”….!!!
भीख की आधी कटोरी
थोड़े से दुलार ढेर सारे
©खामोशियाँ-२०१३
चीख के हर रोज़ अज़ान बदल जाते…..
इंसान ठहरे रहते मकान बदल जाते….!!!
उम्मीद इत्तिला ना करती गुज़रने की…
धूप के साए ओढ़े श्मशान बदल जाते….!!!
दोस्ती-यारी भी अब रखते वो ऐसों से…
एक छत तले कितने मेहमान बदल जाते….!!!
साथ तो आखिर तक ना देता अक्स तेरा….
दिन चढ़ते परछाइयों के अरमान बदल जाते….!!!
©खामोशियाँ-२०१३
चलते गए मीलो हम पुराने हुए….
गिनते गए पत्थर आज जमाने हुए….!!!
रात भर फूँको से जलाए रखा अलाव…
कितनी बयार आई लोग वीराने हुए…..!!!
सदाये गूँजती रही जी भर अकेले मे….
कल के जुगनू देख आज शयाने हुए…..!!!
ज़िंदगी भी बस कैसी रिफ़्यूजी ठहरी….
भागते-भागते ही गहने पुराने हुए….!!!
©खामोशियाँ-२०१३
बरसो बाद भी पास बुलाना भूल गए…..
आज के लोग हमे पहचानना भूल गए…..!!!
बड़ी मोहलत दे दी हमने ज़िंदगी को…..
प्यासे समुंदर आँखें मिलाना भूल गए…..!!!
जुगनू ने यारी ऐसी भी क्या निभाई….
परवाने सम्मो से मिलावाना भूल गए……!!!
नज़्म कितनी अभी भी लटकी सीने मे…..
कूँची पड़ी अकेली कैनवास लाना भूल गए…..!!!
©खामोशियाँ-२०१३
लोग अकसर पूछते कि टैग “खामोशियाँ” ही क्यूँ…
मैं कहता…..
कितनों को हम सर चढ़ाये बैठे हैं….
दिल लगता नहीं पर लगाए बैठे हैं…..!!!
रास्ते कहाँ आज गुलदस्ते थामे….
वादियों के गुलाब मुंह फुलाए बैठे हैं….!!!
नजूमी ले गया जायचा भूल से….
चेहरे इन लकीरों मे उलझाए बैठे हैं….!!!
ज़िंदगी कुछ तेरी थी कुछ मेरी भी….
किस्तों के कई मकान बनाए बैठे हैं…..!!!
©खामोशियाँ-२०१३
टूट रही हो आरज़ू तो याद फाँक ले….
फट गई बदली चले सितारे टाँक ले….!!!
आसानी से कहाँ मिलती है मोहब्बत…
राहों के उजाले तले इशारे झाँक ले….!!!
बड़े अधूरे वादे रखे गमों की पोटली मे….
देख रहे लोग चले किनारे ढ़ाँक ले…..!!!
©खामोशियाँ-२०१३
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