जहां तक हो सका संकलन बना दिये है लोगों की फरमाइश आ रही थी शेर को इकठ्ठा पढ़ने की…..
नंबर जरूर बदल गए होंगे पर आज भी…
कुछ एक नाम मिटाने का मन नही होता…!!!
एक छोटे से दिल मे अब कितनी और दर्द पलेगी….
पहले ही काफी सुराख जगह बनाए इन दरख्तों तले….!!!
फर्क ही नहीं पड़ता अब…..किसी के खफा होने का…..
अजीज कोई बचा नहीं…..गैरों को तवज्जो देते नहीं….!!
रंग-बिरंगी मोमबत्तियों को रोते देख बोल उठा मैं….
कितना झूठ बोलते लोग आँसू रंगीन नहीं होते….!!!
इतने आसानी से कहाँ मिलते हर सींपो में मोती….
गर आ भी गए बामुश्किल तो शक्ल जुदा ही होती।
आखिर कौन पढ़ देता मेरे हिस्से की नमाज़…
मेरी तो मौला से शायद कभी भी बनी नही….!!!
हर जख्म अब कहाँ नासूर बन पाती….
लोग तो उसे पकने से पहले ही मार देते….!!
उम्मीद की आंच अभी खत्म कहाँ हुई….
लोग तो यून्ही मुझे अकेला समझ बैठे….!!
बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे….
जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखियाँ….!!!
हमने तो उजालों मे खोया सब कुछ….!!!
यादों से अपने दामन भीगो डाले
गौहर जैसे बिखरे चलो पिरो डाले………!!!
कितने मुहल्लों की तलाशी ले चुका मैं…..
मिट्टी की बनावट हैं पर भगवान कहाँ…..!!!
देख कैसे यादों की हिचकियाँ….!!!
कभी काबे के राम…..कभी मस्जिद के श्याम…..
प्रेम के भूखे बैठे……मक्के मदीने-चारो धाम….!!!
चाँद शराबी हो गया मत ढूंढना उसे….
किसी बदरी पर लुढ़का पड़ा होगा…!!!
उम्मीद की परवरिश ठीक से हो नहीं पायी….
तभी फिसल गई जन्नत हाथ मे आने के बाद….!!!
चाँद जेबों मे लिए टहलते हैं….
फ़लक को देख छुपा हम लेते हैं….!!
कितने सितारे कैद नन्ही मुट्ठी मे….
आज उसे परखने को उछाल लेते हैं….!!!
दरिया खड़ा रोज़ पूछता मुझसे….
आज फिर अकेले ही आना हुआ…..!!!
वक़्त की चौखट पर बुलाये बार बार….!!!
गिनते नहीं हम फिर भी कहते हैं….
खिलौने बने हम तोड़े गए हज़ार बार….!!!
अरमानो का गुलदस्ता सजाये बैठे हैं….
बड़ी दिल्लगी से दिल लगाए बैठे हैं….!!!
आते ही नहीं की बता दे उन्हे हम….
उनकी चाहत मे कितनों को रुलाए बैठे हैं….!!
ख्वाब चिपके बैठे हैं अलसाई आँखों से….
फिर सोये हो या जागे क्या फर्क पड़ता….!!!
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