कितनों को बनाकर खुद टूट सा गया…..हर बार ये ख्याल मेरे जेहन मे आता जब भी मैं टूटे खंडहर मे रूककर अपने स्कूल के गेट को निहारता हूँ….खुद पर लाल रंग की परत ओढ़े….कराह रहा….बड़ी दूर तक टकराकर उसकी आवाज़ गूँजती है मानो….छुट्टी होने को लगाई घंटी किसी के कानो को सराबोर कर जाती….!!!
ईंट-ईंट हिल से गए है….अब ना तो ब्लैक-बोर्ड है ना ही चाक….सब कुछ बिखरा पड़ा ज़मीन पर…. एक टूटी सी छप्पर है कभी जिसके कंधे पर हम अपनी साइकल लगाया करते थे…पर आज कोई साइकल नहीं….काका भी नज़र नहीं आ रहे कलम कान मे फंसाये चलते थे…!!!
आज बड़ी जल्दी छुट्टी हो गयी या लगता है कोई आया ही नहीं क्या हुआ आखिर….बसंत अभी है और मानो गरमी की मायूसी स्कूल की सड़कों पर छाई हो….!!!
आखिर हुआ क्या यहाँ पर कोई नहीं जानता….या बताना नहीं चाहता….
मैंने भी काफी लोगो से पूछा पर फुर्सत नहीं किसी को….
पास मे गुजरती हुई स्कूल की दाई दिखी…. मुझे देखते ही उसको ऐसा लगा मानो, बड़े दिनो बाद माँ अपने लाडले से मिली हो जो किसी हॉस्टल मे रह कर पढ़ रहा हो…..!!!
उसका मन था लिपट के रोने का दुख बांटने का, हाँ कुछ मेरा मन भी ऐसा ही था….
बहुत देर तक मैं उसे देखता फिर अपने स्कूल को और सहसा ही दोनों की आँखों से मोती बरसते जा रहे थे….
फिर थोड़ा सम्हाल के मैं पूछा “अम्मा क्या हुआ हमारा स्कूल किसने तोड़ दिया….” (आवाज़ मे इनता वज़न था की बस कुछ दूर जाके ही थम गया)
अम्मा ने सर हिला के विद्यालय की तरफ इशारा करके बताया की “होटल बनेगा…..राहुल बाबू होटल बनेगा….”
क्यूँ “चौधरी साहब के पास पैसे की तंगी कबसे हो गयी….अच्छा भला तो था अपना स्कूल…” मैंने जवाब मे फिर सवाल उठाया….
अम्मा ने भी उसी लहजे मे उत्तर दिया “बाबू ये बड़े लोग है … भावना….प्रेम…इनकी शब्दकोश मे नहीं….”
मुझे भी चौधरी कह रहे थे आ जाना तुझे काम दे दूंगा….”पर मैंने ये कहकर मना कर दिया कि मुझसे ये सब नहीं हो पाएगा..”
अम्मा के जाने के बाद ….
अब मुझे माजरा आईने की तरह साफ दिख रहा था….पर ऐसा होना नहीं चाहिए था….!!!
मैंने सोचा “चौधरी जी से मिलू” पर क्या होगा उससे शायद अब थोड़ी देर हो चुकी थी….सब बिखर चुका था….
फिर भी रहम की भीख मांगता वो स्कूल मेरी नज़रो से ओझल ही नहीं होता था….
आज भी जब मैं उस तरफ से गुज़रता हूँ तो ऊंची इमारतों की नीव मे अपने पसीने से सींची हर उस दरार को पहचानता हूँ….!!!
©खामोशियाँ-२०१४
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