शाम के पाँच बजे हैं….प्रकाश थोड़ा थोड़ा थम रहा था….ट्यूब-लाइट जल चुकी थी….सभी अपने काम मे लगे थे….
“समोसे दस के दो”….”समोसे दस के दो”….बस इसी शोर से पूरा प्लेटफोर्म गूंज रहा था…..!!!
कचौड़ियाँ वाले….पूड़ी वाले अपनी धुन मे बोले जा रहे थे….हर ठेले पर बड़ी संख्या मे लोग कुछ ना कुछ खाये जा रहे थे।
ऊपर लाउडस्पीकर मे मीठी आवाज़ चल रही थी…..”ट्रेन नंबर 12553 वैशाली सुपरफास्ट जो बरौनी से चलकर मुज्जफ़्फ़रपुर….छपरा…सीवान होते हुए दिल्ली तक जाएगी वो कुछ ही समय मे प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर आ रही है…”
कुछ ठेले वाले….कुछ किताब वाले…..अगल बगल यात्रियों से लिपटे खचाखच प्लेटफोर्म मे शायद अपने तो काफी थे पर टुकड़ो मे बंटे….यही कुछ चार-पाँच के गुच्छो मे….!!!
अक्सर अब बड़े प्लेटफॉर्म से कुर्सियाँ तो लापता हो गयी है….तो लोग खुद ही दरी बिछा कर नीचे ही बैठ जाते….!!
और बिना मतलब की गुफ्तगू चालू….टाइम जो काटना सभी को….उस पर कुछ दिग्गज तो ऐसे मिलते जिनके पास बोलने के लिए भगवान ने रेडीमेड टेपरेकॉर्ड दिया है बस ऑन कर और चालू कर दो….!!!
विकास शुक्ला भी कारोबार के सिलसिले मे दिल्ली जा रहे थे….उनकी श्रीमती और बच्चे बरौनी मे ट्रेन पर चढ़ चुके थे। असल मे शुक्ला जी अपना बिज़नस गोरखपुर मे डाले थे, पर उनका पूरा परिवार बरौनी मे ही बसा था। शुक्ला जी गोरखपुर विश्वविद्यालय के बड़े मेधावी छात्र रहे थे। पर आर्थिक तंगी और कुछ प्रारब्ध के खेल ने उन्हे बड़ा ओहदा पाने से वंचित कर दिया।
अरे शुक्ला बाबा काहे घबरात हवा हो….”पांडे जी का सुना उनका एक बड़ा शोरूम है दिल्ली मे जाएगा तो बता दीजियेगा यादवजी ने भेजा है वो आपको ले लेंगे…अरे वो सब अपने लंगोटिया यार है….अब नहीं काम आएंगे तो कब आएंगे….”
ऐसे ही ना जाने कितने यादवजी टाइप लोग रहते हर ग्रुप के साथ जो कुछ यही बातें दोहराते है….पर जाने वाले भी तो उनकी बात कहाँ सुनते उनका ध्यान तो अपनी गाड़ी पर टिका रहता….!!!
लोग बैठे बैठे रहते…फिर झांक के अपनी ट्रेन को निहार आते….
प्लेटफॉर्म पर एक घड़ी इसीलिए टाँगी जाती….क्यूंकी भारत मे उसी को देख तो कुछ दिलासा मिलता रहता….पर लोगों की अक्सर शिकायत रहती की घड़ी धीमे चलती स्टेशन की….और वो भी बस तभी तक जब तक ट्रेन का राइट टाइम ना आ जाये…!!!
पाँच बजकर चालीस मिनट हो गए…..लोग और उतावले हुए पर ट्रेन नहीं आई….अब वो मीठे आवाज़ भी नहीं सुनाई पड़ रही थी….लोग बार बार पूछताछ की तरफ ही आँखें गड़ाए रहते थे…..पर वहाँ भी कोई जवाब नहीं….!!!
समय भागता जा रहा था….लोग परेशान होते जा रहे थे….यात्रियों मे कुछ परीक्षार्थी लड़के….कुछ बीमार लोग….कुछ के इंटरव्यू…उनको कई तरह के डर सताते जा रहे थे….बड़ी गहमागहमी जैसी होती जा रही थी….!!!
अचानक लाउडस्पीकर कुछ काँपा तो….पर कुछ बोले बिना ही रुक गया….ऐसा होते ही लोगों मे उत्सुकता का नया आयाम जोड़ दिया….अब लोगों मे ये जानने की ललक गहराती गयी की आखिर गाड़ी मे ऐसा क्या हुआ है…!!!
स्टेशन पर अफरा-तफरी का माहौल सा हो गया, लोग अपने अपने कयास लगाने लगे। अब शुक्ला जी का मन भी घबराने लगा, उनके हाव-भाव देख लग रहा था की चिंता की लकीरें उनके पूरे चेहरे को ढँक लेंगी। यादव जी ने ढाढ़स बँधाया।
अबकी बार लाउड स्पीकर पूरा रुवाब मे आया था…और ज़ोर से गरजा “यात्रियों से निवेदन है की दी गयी जानकारी को ज़रा ध्यान से सुने….ट्रेन नंबर 12553 मे जहरखुरानी हो गयी है….काफी सारे लोगों को इसकी वजह से बीच मे रोककर चिकित्सा के लिए भेज दिया गया है…अगर आपका कोई संबंधी ट्रेन मे था तो आप आकर अपना व्योरा हम तक पहुंचा दे….आगे कुछ जानकारी मिलेगी तो हम सूचित करेंगे…”
स्टेशन मे अफवाहों का बाजार गरम हो गया। लोग अपनी फालतू की बातें चालू कर दी।
अब तो मानो….विकास बाबू पर पहाड़ टूट पड़ा…श्रीमती का फोन भी नहीं लगा रहा था….उन्होने अपना समान समेटा और जल्दी से जाने लगे आरपीएफ़ ऑफिस के तरफ। आज ये 300 मिटर का फासला 3 लाख आशंकाओं को जनम देता चला गया। शुक्ला जी को अपना पता तक ठीक याद ना रह गया था, वे होश खोते जा रहे थे। यादव जी ने उनको जा कर बैठाया, और उनकी डीटेल नोट करवा दी।
यादव जी को भी थोड़ी जल्दी थी आखिर शहर मे कोई किसी के साथ कितना देर ठहरता। विकास बाबू के आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे। उनका तो संसार उजड़ चुका प्रतीत हो रहा था।
काफी देर तक कितनी ट्रेन आई कितनी गयी कुछ पता नहीं चला। शुक्ला जी ऐसे बैठे रहे मानो उनको स्टेशन पर ही जाना था, उन्हे कुछ याद ही नहीं था बस एक ही खयाल आ रहा था, प्रिया बेटा और साक्षी जाने कैसे होंगे, किस दशा मे होंगे।
लाल रंग की घड़ी 00:00 दिखा रही थी, तभी दिखा कुछ खाकी वर्दी मे लोग एक शक्स को हथकड़ी लगाए लिए जा रहे थे। कुछ फुसफुसाहट से विकास बाबू को संदेह हुआ की माजरा जहरखुरानी का ही है, वो खुद को रोक नहीं पाये, दारोगा जी से पूछ ही लिया…
“दारोगा जी क्या मामला है….वैशाली अभी तक आई नहीं…???”
दारोगा जी ने बाकी लोगों को जाने दिया और खुद रुके…
अरे “ये सबने पैंट्री कार वालों का ड्रेस पहन पूरा का पूरा डिब्बा ही साफ करने की प्लानिंग करके बैठे थे। एम-वक़्त पर सही सूचना से इनको दबोच लिया गया….पर इनका खाना खाने से काफी लोग गंभीर हो चुके है…और कुछ की जान भी गयी है….और वैशाली तो कब की जा चुकी है… “
“आपका भी कोई है क्या….” दारोगा जी ने थोड़ा नरमी से पूछा
“जी बीबी है और एक 7 साल की बिटिया है….” शुक्ला जी ने भरी आवाज़ मे बोला
“हे ईश्वर….खैर करे….आपके परिजन का नाम लिस्ट मे ना हो….बोलिए ज़रा नाम तो….”
विकाश बाबू….”चुप रहे…जैसे उन्होने कुछ सुना ही नहीं….”
दारोगा जी ने फिर कहा….”श्रीमान जी धीरेज रखिए बोलिए नाम ….”
साक्षी शुक्ला …. प्रीति शुक्ला
दरोगा जी ने लिस्ट मे बड़ी तेज़ी से निगाह दौड़ाई….और ठहर गए….उनसे बोलते ही नहीं बन रहा था कुछ….!!!
लिस्ट थमा दी विकास बाबू को….
विकास सब कुछ समझ चुके थे। पर फिरभी मन को दिलासा देने के लिए सूची मे नाम खोजने लगे।
पूरी लिस्ट खत्म होने को आई ही थी कि विकास की निगाहें दूसरे पेज की मृतक सूची मे आखिरी के दो नामो पर रुकी…..
विकास टूट चुके थे… “सोच रहे थे भगवान इतना निर्दयी कैसे हो सकता….क्या वो नीचे के दो नाम हटवा नहीं सकता था….क्या मेरी कर्म-धर्म मे कमी थी….क्या भगवान लिस्ट बदल नहीं सकता उसके यहाँ तो कई सारे पेपर है पेन है प्रिंटर है उसको कौन कमी…”
अगले दिन फिर पाँच बजे फिर वही सूचना हुई… वही मीठी आवाज़….”ट्रेन नंबर 12553 वैशाली सुपरफास्ट जो बरौनी से चलकर मुज्जफ़्फ़रपुर….छपरा…सीवान होते हुए दिल्ली तक जाएगी वो कुछ ही समय मे प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर आ रही है…”
लोग आए फिर वही सब माहौल पर आज एक शक्स लापता था…..विकास….
दुर्घटना एक दिन मे ही पूरे जीवन के कितने मायने बदल के रख देती….!!!
– मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
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