देखने को सारे जमाने घूम आए,
कहने को सारे पुराने ढूंढ लाए।
मिलते कहाँ है हर सींप में मोती,
खोजने को सारे बहाने ढूंढ लाए।
पहचान होती ही गयी अपनों की,
सहने को सारे ठिकाने ढूंढ लाए।
धूप गलियों में आई भी तो कैसी,
जलने को सारे फसाने ढूंढ लाए।
ऊब चुके ज़िंदगी की बेरहमी से,
मिलने को सारे तराने ढूंढ लाए।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (३०-अगस्त-२०१४)
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