जीने का नया तजुर्बा सिखाता गया,
साथ चलकर रास्ता दिखाता गया…!!
अड़चने थी कितनी सफर में लिपटी,
रात रुककर दांस्ता सुनाता गया….!!
नज़्म जुबान से उतार कर देखता,
हाथ पकड़े रहता लिखाता गया…!!
लत लग गयी खूब बातें बनाने की,
चुप रहकर रिश्ता बनाता गया….!!!
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(३०-अक्तूबर-२०१४)(डायरी के पन्नो में)
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