बदलते वक़्त में कौन खड़ा होता है,
नज़रों से गिर के कौन बड़ा होता है।
देखते है पुराने गुज़रते लम्हे दूर से,
पास होकर वहाँ कौन पड़ा होता है।
ज़िंदगी के पहिये पर बढ़ते ही जाते,
यादों के ताबूत में कौन गड़ा होता है।
समझौता कर लेते अपने दिलासों से,
ख्वाबों से लड़कर कौन कड़ा होता है।
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यादों से लड़कर (२६-फरवरी-२०१५)
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
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