कितने साँचो मे यूँ ढलता है समाज ….
भट्टी की ओट मे छुपा सेंकता है आज….!!!
बड़ी जल्दबाज़ी मे दिखते आजकल लोग….
कलाई की घड़ी मे दबा ताकता है आज…..!!!
चाँद की भीनी रोशनी जेब मे छुपाए
सूरज की पोटली से पड़ा झाँकता है आज…..!!!
कभी छप्पन-भोग लादे चलता था….
नीम की गोली मे खोया फाँकता है आज….!!!
©खामोशियाँ-२०१४
बहुत सुंदर. होली की मंगलकामनाएँ !
नई पोस्ट : होली : अतीत से वर्तमान तक
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 15/03/2014 को "हिम-दीप":चर्चा मंच:चर्चा अंक:1552 पर.
सुन्दर रचना…होली की अग्रिम शुभकामनायें!