अपने ही को देखकर वो शर्माने लगे है,
आईने भी आजकल नज़र छुपाने लगे है।
आँखों की खेतों में कितने ख्वाब उगते,
दिल की डाली पर फूल मुस्काने लगे है।
वादों की पोटली यादों से ही भरती जाती,
साये उजालों के दामन से लगाने लगे है।
कहना तो रहता कितना कुछ एक बार में,
जुबां खामोश रहते इशारे समझाने लगे हैं।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(२४-अक्तूबर-२०१४)
रूह की गहराइयों से निकले बहुत सुन्दर अहसास… आभार मिश्रा जी
Recent Post कुछ रिश्ते अनाम होते है:) होते