आवाज़ जो है अगर तो बोलो भी,
दिल में ना रखो जुबान खोलो भी।
वक़्त जब बस में नहीं तो क्या करे,
जाम की भट्टी से जहान तौलो भी।
मुकद्दर ज़िंदगी की चाभी छोड़ा,
जेब से निकाल अरमान खोलो भी।
यादों के गुलदस्ते तो मोती गिराते;
धागे में डालकर वादे पिरोलो भी।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२९-अक्तूबर-२०१४)(डायरी के पन्नो से)