खूनी धब्बे सानते है अखबार रोज़,
खुदा छुपके रोता है लाचार रोज़…!!!
पन्ने पलटने का मन ना होता,
बनकर टूट जाते है विचार रोज़…!!!
सड़ते घावो को ध्यान कौन देता,
मायूसी से झाँकता है उपचार रोज़….!!!
शकुनि के पासों मे उलझ ही जाता,
दुर्योधन से भागता है प्रतिकार रोज़….!!!
तम के कुशाशन पर ध्यान कौन देता,
जेबें वजने तौलता है बहिष्कार रोज़….!!!
©खामोशियाँ-२०१४
आज 10 /04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (कुलदीप जी की प्रस्तुति में ) पर
धन्यवाद!
यश एवं कुलदीप जी आपका धन्यवाद।