पथरीली रास्तों पर की कहानी और है..
सिसकती आँखों में नमकीन पानी और है..!!
टूटा तारा गिरा है देख किसी देश में..
खोज जारी है पर उसकी मेहरबानी और है..!!
आग बुझ गयी मेरे ख्यालों को राख करके..
उड़ती हवाओं में उसकी रवानी और है..!!
कैसे कैसे बाजारों में आ गए देख..
उमड़ती बोलियों में उसकी बेजुवानी और है..!!
किस “आकृति” को बनाने बैठ गया है तू..
तेरी कूंची से लिपटी उसकी परेशानी और है..!!
बड़ा दिन से मानता हूँ तुझे ए मौला..
गुस्सा है तू और उसपर तेरी मनमानी और है..!!
©खामोशियाँ-२०१४
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (06-01-2014) को "बच्चों के खातिर" (चर्चा मंच:अंक-1484) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना बुधवार 08/01/2014 को लिंक की जाएगी……………
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ….धन्यवाद!
आग बुझ गयी मेरे ख्यालों को राख करके..
उड़ती हवाओं में उसकी रवानी और है..!!..
ये राख है जो वापस आती है आँखों में दुबारा … फिर ख्याल उगने लगते हैं …
bahut sunder
वाह!
बेहद उम्दा……
कल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
सभी मित्रगणो…सज्जनों…मेरा प्रणाम एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाइयाँ…!!!
मन के भावों का विस्तार कविता की अभिव्यक्ति में दिख रहा है.
अच्छी लगी यह रचना .
बेहतरीन अंदाज़….. सुन्दर
अभिव्यक्ति….
बहुत ही बेहतरीन गजल….
🙂
http://mauryareena.blogspot.in/