दिन में भी सपना सा लगता है,
कोई आज अपना सा लगता है।
कदम बहकते हुए दिखते है मेरे,
कोई साज अपना सा लगता है।
चेहरे महकते हुए दिखते है मेरे,
कोई राज अपना सा लगता हैं।
नखरे बलखते हुए दिखते है मेरे,
कोई ताज अपना सा लगता है।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२७-सितंबर-२०१४)
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (03.10.2014) को "नवरात महिमा" (चर्चा अंक-1755)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनायें।
आपकी लिखी रचना शनिवार 04 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी……….. http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ….धन्यवाद!
क्या बात है…..बहुत ही खास एहसासों को समेटे हैं यह पंक्तियाँ।
bahut khubsurat likha hai aapne rahul ji
mere blog par bhi aapka swagat hai
http://iwillrocknow.blogspot.in/
bahut hi sundar rachana……..
sundar rachna
यह सपना अपना बना रहे।