शब्दों की बगिया में घुसना,
बड़ा दूभर है आजकल..!!
यादों को पैरो तले रौदना,
बड़ा दूभर है आजकल….!!
सुना….अब कोई आता नहीं,
सुना….अब कोई जाता नहीं,
बूढ़ी तख्त पर अकेले बैठना,
बड़ा दूभर है आजकल….!!
खर्राटों के सुरीले गानो से,
सन्नाटो के कटीले तारो से,
सर झुकाकर खुद निकलना,
बड़ा दूभर है आजकल….!!
सब सामने लूटते देखना,
बड़ा दूभर है आजकल….!!
सब सामने कटते देखना,
बड़ा दूभर है आजकल….!!
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(१८-जुलाई-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
आपकी लिखी रचना शनिवार 19 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी……………
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ….धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर भाव भरे हैं आपने….ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी..