वजह भी बेवजह दिख रही है,
सुबह ऐसी इशारे लिख रही है।
बहकी बयार रुकी-रुकी सी है,
धूप ऐसी चौबारे खिल रही है।
मगन है भौरें अपने गुंजन में,
भूल ऐसी कतारे मिल रही है।
जलन है लोगों के ख्वाबों में,
धूल ऐसी दीवारे सिल रही है।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (११-सितंबर-२०१४)
सुंदर प्रस्तुति..बहुत कुछ बेवजह ही होता है।।।