वक़्त की
सरगोशी पकड़,
कुछ गुनगुना रहा था।
प्यारा
चंदा दूर से
सुन रहा कान लगाए।
चुप है,
बोलता भी नहीं,
जाने क्या समझा।
अचानक
से छुप गया
बादलों के पीछे।
अब लापता है,
नाराज़ है लगता हमसे।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (२७-अगस्त-२०१४)