गुस्सा तो
फ़लक से भी
होता है चाँद।
रोज़ झगड़ता
रोज़ कटता हैं।
फिर एक दिन
अचानक से
गायब हो जाता।
खूब रोता
फ़लक उस दिन
उसके खातिर।
पिघल जाता
आखिर प्यारा चंदा।
फिर आता
नए रूप,
नए रंग में
उसी चमक के साथ।
पंद्रह दिन
तक फिर से,
अपने सीने
लगाने को
तैयार खड़ा फ़लक।
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चाँद-फ़लक
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(१७-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
चाँद और फलक का अनोखा नाता है…सुंदर भाव !
उत्तम प्रस्तुति…