चुनाव एक पहेली है….कौन कहता सहेली है….
रोज़ चले आते दौड़े…..पैसों की होती होली है….!!!
नाम पुकारते पुचकार के….
दान दिलाते बड़े प्यार से….
अन्न खत्म हो जाता जब….
थाल सजाते बड़े प्यार से….!!!
मौसम की चाय कहाँ छनती…
कॉफी पिलाते इतमिनान से….
गाँव-शहर तब एक सा लगता…
बिजली रुकती स्वाभिमान से….!!!
रोज़ खड़ी रहती बन-ठन के..
वो गाँव की पहली ड्योढ़ी है….!!!
चुनाव एक पहेली है….कौन कहता सहेली है…
रोज़ चले आते दौड़े…..पैसों की होती होली है….!!!
कुशाशन खाट पे लेटा…
आग सेंकती छोरी है….
बड़े-बूढ़े सब जुगत मे रहते…
सड़क चमकती गोरी है…!!!
दुशाशन साड़ी बंटवाता….
कृष्ण यहाँ की चोरी है…
वक़्त बेवक्त शक्ल बदलता
गद्दी की छोरा-छोरी है….!!
चुनावी वादे सबको लुभाते….
आँखों मे बस्ती लोरी है….!!
चुनाव एक पहेली है….कौन कहता सहेली है…
रोज़ चले आते दौड़े…..पैसों की होती होली है….!!!
©खामोशियाँ-२०१४
बहुत बढ़िया भाई जी-
बधाई-