कुछ ऐसे ही फिसलता है मंज़र धीरे धीरे,
कुछ ऐसे ही निकलता है खंजर धीरे धीरे….!!
सपने मौजों की तरह ही उठकर बिखरते,
आँखों में उतरता है समुन्दर धीरे धीरे….!!
बात जुबान की कुछ ऐसे टूटती जेहन में,
दिल ऐसे ही बदलता हैं बंजर धीरे धीरे….!!
लोग मोम के बाजू लगाए घरों से निकलते,
जिस्म ऐसे पिघलता हैं जर्जर धीरे धीरे….!!
टूटे फ्रेम में ऐसे चिपकी है तस्वीर बनकर,
यादों में ऐसे महकता हैं मंज़र धीरे धीरे….!!
©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // ०९-दिसम्बर-२०१४
कल 14/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
अरे वाह.. धीरे धीरे में बड़ी बातें!