एक बूढ़ी लकड़ी…..
लिपटे कितने जंजाल…..!!!
आखिर
कुंडी के कानो मे
कब तक फंसे रहेंगे…..!!!
जंग की चादर ओढ़े
बदकिस्मती ताले…..!!!
लिपटे कितने जंजाल…..!!!
आखिर
कुंडी के कानो मे
कब तक फंसे रहेंगे…..!!!
जंग की चादर ओढ़े
बदकिस्मती ताले…..!!!
एक ही कमरे मे कैद…..
ना जाने कितने…..
यादों के गुच्छे…..!!!
ना जाने कितने…..
यादों के गुच्छे…..!!!
कुछ तस्वीरें….
…..कुछ लकीरें…..
अनगिनत साँसे……
महफ़ूज आज भी उन्ही…..
दरीचों मे खोयी…..!!!
कबसे कानो का
एक ट्रांसमिटर*
छुपा रखा वहाँ….!!!
अब तो
दीवाल के रंग भी
पपड़ी छोड़ने लगे हैं…..
कौन कहता आएगा कोई…..!!!
©खामोशियाँ-२०१३
कल 05/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
बहुत सुंदर…….
सुन्दर … पर कुण्डी की आस टूटती नहीं .. कभी कही कोई तो आयेगा 🙂 सुन्दर रचना बधाई ..शुभकामनाये
यशवंत साहब धन्यवाद…..देर से आने के लिए माफी…..!!!
कौशल जी स्वागत है हमारी खामोशीयों के पटल पर…..!!!
सुनीता जी
आस की प्यास बुझेगी ना कभी हम भी जानते हैं……
तभी तो हर रोज़ पलके उठाकर उधर ही ताकते हैं…..!!!
और खामोशियाँ की खामोश दुनिया मे आपका स्वागत…..!!!
सुन्दर कविता
Bahut sundar!
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