इस ठंड मे इतनी ओस पड़ रही कि दूर छोड़िए पास ही देख पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा….रेल से लेकर हवाई-जहाज सब मंद पड़ गए है…..और ज़रा सी तेज़ी सीधा हॉस्पिटल पहुंचा दे रही लोगों को….तो बस इसी परिपेक्ष मे हमने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं ज़रा गौर कीजिएगा…..!!!
एक पूस की अंधेरी गुमनाम रात मे….
चारो तरफ धुंध की सिगरेट फूंकता…..
………………दौड़ा आ रहा था कि…..!!!
वक़्त के पहिये की
दाहिने हड्डी टूटी गयी…..
बूढ़े काका भी ढूढ़िया लालटेन थामे…..
……………..जांच रहे मर्ज…………!!!
बयार की स्ट्रेचर पर अब भी लेटा……
…………कराह से बिलबिला रहा…..!!!
अब देख कैसे कड़कड़ा रहे अब्र…..
फ़लक की चमकती भीगी……….
…..एक्सरे प्लेट पर उभरा है कुछ…..!!!
तारे जब आँसू पोछेंगे…..तो पता चलेगा…..
वक़्त तो…..
……….अभी लेटा बिस्तर पे मुंह लटकाए….!!!
©खामोशियाँ-२०१३
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
—
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (22-12-13) को वो तुम ही थे….रविवारीय चर्चा मंच….चर्चा अंक:1469 में "मयंक का कोना" पर भी है!
—
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
—
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर कृति व प्रस्तुति , मिश्रा जी धन्यवाद
कंप्यूटर है ! – तो ये मालूम ही होगा -भाग – १