फागुन क बदरा,
झूमत बा रे।
पासे बैठावे खातिर,
क़हत बा रे।।
उड़ाई क गुलाली,
जरा ए बाबू।
नजरिया मिलावे खातिर,
क़हत बा रे।।
झूमी झूमी खेतिया मे,
रंग छितराये,
लाली लाली गालिया मे,
बसत बा रे।
गोरी गोरी मूहवा पे,
चढ़त रंगवा।
बरवा लटियावे खातिर,
पुछत बा रे।।
खोजत बा आपन,
पुरान बालम देख।
रंगवा से नहवाए क,
खोजत बा रे।।
मीठ मीठ चढ़ल बा,
कराही चूल्ही प।
जउन जउन पकवान,
बनत बा रे।।
फागुन क बदरा,
झूमत बा रे।
पासे बैठावे खातिर,
क़हत बा रे।।
– खामोशियाँ (मिश्रा राहुल)
Recent Comments