
लोग गाँव से जैसे शहर आते है,
खुद में ही डूबते नज़र आते है।
चेहरे पर हंसी रोककर रखे कैसे,
अपने ही ख्वाबों से डर जाते हैं।
इस टीन की छप्पर में सुकून है,
कुछ देर और यहां ठहर जाते है।
बचपन में ढूंढा था जिन रंगों को,
फिरसे तितलियों के घर जाते है।
लम्हों की अपनी कहानियां होती,
जिसे सुनाकर लोग गुजर जाते है।
©खामोशियाँ-2019 | मिश्रा राहुल
(06-मार्च-2019)(डायरी के पन्नो से)