सुप्त जनो अब कूद पड़ो….
रण लड़ो मत मूक बनो….
टंकार लगाओ….गर्जन सुनाओ….
जीत की हवस का अलाव जलाओ….!!!
गाँडीव पड़ा लाचार….कर रहा पुकार….
उठो….लड़ो….और विजय सुनाओ….!!!
इंद्रियाँ पकड़ो विद्रोह हैं कैसा….
बदलेगा मनुज वक़्त हैं ऐसा….
तीर उठाओ….प्रत्यंचा चढ़ाओ….
आग की उन्माद का विस्फोट लगाओ….!!!
गाँडीव पड़ा लाचार….कर रहा पुकार….
उठो….लड़ो….और विजय सुनाओ….!!!
शास्त्र है साथ तो फिर डर है कैसा….
जो लड़ता आखिर विजय उसी का होता….
दिशा पकड़ो….दशा पकड़ो…..
काल की प्रलय का नशा पकड़ो….!!!
गाँडीव पड़ा लाचार….कर रहा पुकार….
उठो….लड़ो….और विजय सुनाओ….!!!
©खामोशियाँ-२०१४
आज कर्म करने वालों की कमी है .. गांडीव थामने वालों की कमी है .. उठो ..
आह्वान है ये कविता …
बहुत सुन्दर और सार्थक आह्वान….
बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2014) को "गाँडीव पड़ा लाचार " (चर्चा मंच-1521) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अर्जुन अभी सो रहा है ….उसे उठाने के लिए सार्थक आह्वान !
new post बनो धरती का हमराज !
अच्छा आव्हान गीत है …बधाई….कुछ वर्तनी की एवं व्याकरण की त्रुटियाँ हैं…सुधार करलें …यथा…
—जो लड़ता आखिर विजय उसी का होता….= विजय उसी की होती
—काल की प्रलय का नशा पकड़ो….???? पकड़ो ????
–जीत की हवस का अलाव जलाओ… हवस सभी की गलत होती है….
वीर रस से पंक्तियों ने प्राण फूंक दिए अभिव्क्ती में …
आज तरुण वर्ग यदि जाग जाएगा
तभी भविष्य उल्हास मना पाएगा
अन्यथा विकट चुनौतियों ही होंगी
नन्हा कदम भी न कभी चल पाएगा
खुशी की बात है की आप वो तरुण हैं जो आगे बढ़ क्र आये ।
माँ शारदा आप पर ऐसे ही आशीष वर्षा करे
शुबह्कामनायें!