कुछ पन्ने
ज़िंदगी के,
मोड कर रखे थे।
आज बुकमार्क*
पकड़ पहुँच गया,
उसमे भरने सब-कुछ।
मंज़र बदल गए,
रिफिल बदल गयी,
लेखनी की बनावट इतर।
कागज
कोरा कहाँ,
अब पीला पड़ चुका है।
अब और नहीं,
रोकूँगा खुद को
लिख डालूँगा सब कुछ।
हर वो नज़्म,
जो अधूरी
रह गयी थी।
ठीक उसी
एहसास में,
जो हमारी पहचान है।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(१७-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो में)
जब सब बदल गया तो अहसास भी बदल जाते हैं