दिल की दरिया कूदकर तराना ढूंढिए,
आप भी कभी हंसने का बहाना ढूंढिए।
ज़िंदगी संवर जाएगी पलभर में ही,
यादों की बस्ती से ऐसा घराना ढूंढिए।
ख्वाब में देखा तो हकीकत भी होगा,
दिन के उजाले में कभी फसाना ढूंढिए।
आप ही के सिक्के निकले हर जगह,
नक्शे में डूबकर ऐसा जमाना ढूंढिए।
बातों में रहते जिसके चर्चे आजकल,
आँखों से पूछकर ऐसा सयाना ढूंढिए।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०४-अक्तूबर-२०१४)
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 05/10/2014 को "प्रतिबिंब रूठता है” चर्चा मंच:1757 पर.
बहुत उम्दा !
विजयदशमी की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध :भाग -10
शुम्भ निशुम्भ बध :भाग ९
वाह !
सुंदर प्रस्तुति…
आभार।
Bahut sunder prastuti ….dhanywad !!
सुंदर रचना !
खूबसूरत अंदाज!