वो कटते है वो मरते हैं,
बातें अदब की करते हैं।
मंदिर-मस्जिद आगे करके,
चर्चे साहब सी करते हैं।
घंटे-अज़ान की राग बताके,
दंगे मजहब की करते हैं।
मिलता है क्या इनसे इनको,
रातें बेढब सी करते हैं।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२८-जुलाई-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
साया बापू का उठा, *रूप-चन्द ग़मगीन :चर्चा मंच 1690
बेहतरीन …
सुन्दर !
अच्छे दिन आयेंगे !
सावन जगाये अगन !
सत्य कहा