अस्तित्व….वजूद….
टूट रहा धीरे धीरे…मिट रहा मानव जाती पर से भरोसा। इंसानियत का गला घोंटा जा रहा। खतरे के निशान पार कर रही बुराई। हावी है महत्वाकांछा…हावी है खुद की व्यक्तिगत लोभी भावना। सरेयाम चौराहे पर नीलाम की जा रही बरसों की सजाई सादगी।
अपना…पराया….दोस्त…दुश्मन….
सब एक जैसे दोस्ती करूँ तो दुश्मनी को जन्म दूँ….दुश्मनी करूँ तो इंसानियत का खून होगा….अपना कहूँ तो हक़ कितना दूँ….पराया कहूँ तो दलील क्या दूँ…!!
विश्वास….डगमगाया है…..
उम्मीद है दुबारा पुराने तरीके से लौट सकूँ…बार बार के टूटने पर गांठ पर जाती…और वो गांठ खुलने लगती है समय समय पर…!!!
रिश्तों में गांठ की जगह ही नहीं पर लोगों का क्या वो अपनी बातें कह कर निकाल जाते पर मेरे दिमाग पर गहरा असर करता ये सब…!!!
– मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
मन को मजबूत बनना होगा…