इश्क की सरजमीं पर अब दिखाई कौन देता हैं,
सब अपनी याद हैं लिखते छपाई कौन देता हैं….!!
वक़्त भी तो जरिया हैं समझ के खुद बदलनें का…
वफ़ा है नीम सी कडवी मलाई कौन देता हैं…!!
कभी चलती थी पुरवाई तो मैं भी राग गाता था,
अभी महफ़िल में भी चीखूँ सुनाई कौन देता हैं….!!
आँखों की छतरियाँ भी निकल आई इस मौसम में,
अब दिल की आग भी बरसे दुहाई कौन देता हैं….!!
खुद गुनाहों की सलाखों में लिपटकर देर तक बैठे,
ये धड़कन छूटना चाहे तो रिहाई कौन देता हैं….!!!
©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // ७-दिसम्बर २०१४