नज़रों में कैसा इशारा हो गया,
दिल मेरा कहाँ तुम्हारा हो गया।
पलट कर खोजते तुझे रास्तों में,
मेरा मन आज आवारा हो गया।
जुगनू चुराता रहा रंगीन रातों से,
अंधेरों में वहाँ सितारा हो गया।
सपनों में देखा था जन्नत जैसा,
प्यारा एक जहाँ हमारा हो गया।
मुकद्दर आया खुद पास चलके,
रूठता था कभी बेचारा हो गया।
डूबते रहा था जहाज भी दरिया में,
मन्नत से आज किनारा हो गया।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०७-अक्तूबर-२०१४)
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