पाप-अधर्म…..लोभ-द्वेष…..
अक्सर मिला करते एक साथ….!!!
किसी गुमटी-नुक्कड़ पे….
पान खाते विभीषण से लिपटे…..!!
कासिम-जयचंदो से लदे….
भारत-वर्ष मे….
आज तो
कुरुक्षेत्र बैंचकर आ धमके
कितने चौराहे छेकाए शकुनि…..
पासे फेंके जा रहे…..!!!
कवच टूट चुका….
कुंडल रेपइरिंग-हाउस* मे….!!!
कर्ण पड़ा असहाय…..
नहीं देता वचन
टूटने का भय हैं….!!!
सुदर्शन पड़ा सुन्न….
उंगली घिस गई….
मदसूदन** भी मूक पड़े….!!!
बस कोई रोक लो….
वरना लूट खाएंगे…..
ये काठ के दुर्योधन…..!!!
*Repairing-House…….**श्री कृष्ण
©खामोशियाँ-२०१३
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (05-12-2013) को "जीवन के रंग" चर्चा -1452
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
डॉ साहब आभार आपका…..!!!
संजय जी धन्यवाद पर थोड़ी वर्तनी त्रुटि ने अर्थ का अनर्थ कर डाला….हम पुरुष हैं ….. !!!
सुंदर !