कुछ दलीलें दूँ या तुझे सुन लूँ,
सितारें अपने हिस्से के चुन लूँ।
उम्मीदें भी आँचल फैलाए खड़ी,
कुछ उधार किस्से लेके बुन लूँ।
पहर दर पहर गाती है ज़िंदगी,
सुर उसके ऐसे हटा के धुन लूँ।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२१-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो में)
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