
धूधली सी शाम में श्याम के कंधों पर सर रखकर बैठी थी। काफी देर तक की खामोशी को चीरते हुए, नीतू नें आसमान में आकृति दिखाते हुए कहा चलो न उस बादल के पीछे चले।
एक बादल से दूसरे पर आइस-पाइस खेलेंगे। तुम सूरज ओढ़ लेना मैं चाँद पॉकेट में छुपा लूँगी। फिर अदला बदली करेंगे दोनों का। ले जाऊँगी बहुत दूर मेरी नानी के गाँव में ये चाँद गड्ढे में छुपा दूँगी। फिर चाँद दिन पूरी करने ना आएगा।
और मैं तुम्हारे साथ यहीं पूरे एक दिन एक सौ बरस जैसे गुज़ार दूँगी।
© खामोशियाँ – 2016 | मिश्रा राहुल
(06 – अप्रैल – 2016) (डायरी के पन्नो से)
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, विश्व स्वास्थ्य दिवस – ७ अप्रैल २०१८ “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-04-2018) को ) "अस्तित्व बचाना है" (चर्चा अंक-2935) पर होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
राधा तिवारी