पंद्रह अगस्त समारोह के दो स्कूल हाउस कैप्टन दूर से निगहबानी कर रहे। तम्बू पर कान चिपके सारे फुसुर-फुसुर सुन रहे।
दो मिनट तक तो आजाद रहो तुम। कल पंद्रह अगस्त हैं ना??
तो आज क्या गुलाम हो तुम??? ये तुमसे बेहतर और कौन जानेगा।
हद करते हो। तुम्हें फ़ीता तक तो बांधने का टाइम नहीं, लाओ ना मैं बांध देती हूँ। दूर खड़ी पूरी स्कूल की आँखें दो घरों में एक घर बना रहे। वो तो केवल बालों की क्लिप में लगे तिरंगे को ही जाने कबका सल्युट मारकर परेड पूरा कर दिया।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (१५-अगस्त-२०१५)
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