गिरते गए हम उठकर चलना सिखाया,
जिल्लत के अंधेरों से उठना सिखाया…!!
ख्वाइश में इतनी की अल्लाह दुआ करे…
दुआ हथेली पर रख ढंकना सिखाया…!!
उपवास भी रखा खूब मन्नत कमाया,
घर के भी काम कर जूजना सिखाया…!!
जिद्दी थे कितना पकड़ बैठ भी जाते थे,
हर खुशी को मुंह रख चखना सिखाया…!!
बहस हुई अक्सर चिल्ला पड़े हम भी,
हँस-हंसकर फिर गले लगना सिखाया…!!
चुप रहे हम दिन भर कुछ भी ना कहा,
सीने से लगाकर सब कहना सिखाया…!!
आँखों की नींद तक किसी कोने उतार,
सारी रात जाग सपने देखना सिखाया….!!
आज खड़े हैं अपने पैरों पर हम सब,
उनके उम्मीदों का फल कहाँ लौटाया…!!
©कॉपीराइट-खामोशियाँ // 09-नवम्बर-२०१४
– मिश्रा राहुल // (ब्लोगिस्ट एवं लेखक)