
मैं डूब डूब के चलता हूँ,
मैं गीत वही दोहराता हूँ।
जो दौड़ कभी था शुरू किया,
उस पर दम भी भरता हूँ।
हर रोज ही अपनी काया को,
तेरे पर अर्पित करता हूँ।
कुछ बीज अपने सपनो के,
मैं खोज खोज के लाता हूँ।
एक कल्पतरु लगाने को,
मैं रीत वही दोहराता हूँ।
मैं डूब डूब के चलता हूँ,
मैं गीत वही दोहराता हूँ।
दो हाथ जुड़े कई हाथ मिले,
कुछ मोती से मुक्ताहार बने।
जो साथ चले वो ढाल दिए,
हम रणभेरी से हुकार किए।
हर बाधा से दो-चार किए,
हम ताकत से प्रतिकार किये।
फिर वही से मैं सुनाता हूँ,
मैं प्रीत वही बताता हूँ।
मैं डूब डूब के चलता हूँ,
मैं गीत वही दोहराता हूँ।
– खामोशियाँ | (20 – फरवरी – 2018)
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