चल मैं
हार मानता।
अब तो
बंद कर दे ना
बरसों पुराना
लुका-छिपी का खेल।
बहुत
तलाशा तुझे,
फ़लक में
सितारों के बीच।
क्षितिज में
बहारों के बीच।
मिली ना
मुझे तू कहीं पर।
बालों में रंगों के
लाले पड़ गए,
आँखों के कटोरे में
छाले पड़ गए।
सपनों नें
रास्ते बदल लिए,
वक़्त नें
वास्ते बदल लिए।
उम्मीद थी
कभी तो
टिप मारेगी तू।
उम्मीद थी
कभी तो
जीत मानेगी तू।
हाँ चल मैं ही
हार मानता हूँ।
अब तो
बंद कर देना
बरसों पुराना
लुका-छिपी का खेल।
©कॉपीराइट-खामोशियाँ-२०१४-मिश्रा राहुल
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