चीख के हर रोज़ अज़ान बदल जाते…..
इंसान ठहरे रहते मकान बदल जाते….!!!
उम्मीद इत्तिला ना करती गुज़रने की…
धूप के साए ओढ़े श्मशान बदल जाते….!!!
दोस्ती-यारी भी अब रखते वो ऐसों से…
एक छत तले कितने मेहमान बदल जाते….!!!
साथ तो आखिर तक ना देता अक्स तेरा….
दिन चढ़ते परछाइयों के अरमान बदल जाते….!!!
©खामोशियाँ-२०१३
सच कहा है … दिन के साथ साथ परछाइयां बदलने लगती हैं …. सच को लखा है शेर से …
वाह बहुत खूब
दिगंबर सर….स्वागत है…..
परछाई तो बड़ी बेवफा रहती….
जितनी लंबी उतनी छोटी दिखती…..!!!
अंजु मैम आप पधारे हमारे ब्लॉग पर हम धन्य हो गए…..सुस्वागतम…..और हार्दिक अभिनंदन..
v.nice