छोड़
ना दलीलें
दुनियादारी की।
तू
अपना हक
जाता ना,
तू
फिर से
मुझमें समा ना।
दो बातें
पुरानी करनी।
दो रातें
साथ जगनी।
कुछ
खिस्से फिर
बतला ना।
तू
फिर से
मुझमें समा ना।
दुनिया
परायी सी
लगती है।
तन्हा
सतायी सी
लगती है।
तू
बातों का
जादू चला ना।
तू
फिर से
मुझमें समा ना।
रोज
खोजता हूँ
वो अक्स तेरा।
कितना
प्यारा सा
खिलखिलाता चेहरा
तू
खुल के
सब बता ना।
तू
फिर से
मुझमें समा ना।
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल | २२-०५-२०१५
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, क्लर्क बनाती शिक्षा व्यवस्था – ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !