हजारों मुखौटो में से तुझे ही उठाता हूँ…..
चेहरा देखा नहीं फिर भी बताता हूँ…..!!
कलम भरी पोटली अपने सर लादे….
सबके हाथों से मिटी लकीरें सजाता हूँ….!!
इन्सानो के महफिल में ठहरा रहा….
यादों को ज़िंदगी का जाम पिलाता हूँ….!!!
चीख़ों से सजी एक चारदीवारी में….
तांवों को तपाकर एहसास पकाता हूँ….!!!
बेवकूफ़ियाँ बढ़ा लीं हैं खुद की इतनी….
तनहाइयाँ भगाकर परछाइयाँ बुलाता हूँ….!!!
©खामोशियाँ-२०१४
बहुत सुंदर.
नई पोस्ट : कुछ कहते हैं दरवाजे
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 22/03/2014 को "दर्द की बस्ती":चर्चा मंच:चर्चा अंक:1559 पर.
बहुत सुन्दर
latest post कि आज होली है !