आंसुओं के दाम उलटने लगे है,
आरज़ू जब ऐसे सिमटने लगे है।
कलम कत्ल करते है आजकल,
दर्द टूटकर ऐसे लिपटने लगे है।
कल चाँद हिस्सों में पड़ा मिला,
लोग उसपर ऐसे झपटने लगे है।
दुश्मनी हो जैसे बरसों की हमसे,
लोग वफाएँ ऐसे समेटने लगे है।
उम्मीदें भी मुंतज़िर रहेंगी ताउम्र,
चर्चे-इश्क़ के ऐसे पलटने लगे है।
©2014-कॉपीराइट//खामोशियाँ//मिश्रा राहुल
आज 13/नवंबर /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
मैं क्या बोलूँ अब….अपने निःशब्द कर दिया है….. बहुत ही सुंदर कविता !!