जो पास नही था अब आसपास कहीं,
पल से पलकों में समा जाता है कहीं।
दूरियां ठहरी उतनी बड़ी पर कहने को,
दिल की दवातों से लिखा जाता है कहीं।
दुवाएं अक्सर ढूंढती दो रूहों की कोटरें,
रात की अज़ानों में सुना जाता है कहीं।
मिटता नहीं वजूद किसी शख्शियत का,
राख के ठिकानों से बुना जाता है कहीं।
– खामोशियाँ -२०१७
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