Uncategorized प्रेम में इस्तेहार January 6, 2016 प्रेम में इस्तेहार बन बैठे हैं हम, भोर के अखबार बन बैठे है हम। सब पढ़ते चाय की चुस्की लेकर, हसरतों के औज़ार बन बैठे हैं हम। सुर्खियां जलकर ख़ाक हो गयी, सोच के गुलज़ार बन बैठे है हम। बदलता जाता नक़ाब हर घड़ी, काठ के पतवार बन बैठे हैं हम।
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