प्रेम में सौदेबाज़ी होने लगी है,
कृष्ण की बांसुरी रोने लगी है।
सांसों का मेल होता था कभी,
यादों की तश्तरी खोने लगी है।
पलभर में पास होता था कभी,
रातों की कजरी सोने लगी है।
लबों में खास होता था कभी,
बातों की मिस्री धोने लगी है।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नों से)(२६-०८-२०१४)
सुंदर प्रस्तुति…
दिनांक 28/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है…
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है…
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें…
सादर…
कुलदीप ठाकुर
कवि मन के उम्दा खयालात !
बहुत ही बढ़िया
सादर
सब कुछ बदल रहा है , बदल जाने दीजिये, अच्छी रचना