
रहमत के फ़तवे लेकर दिखाया ना करो,
प्यार किए तो किए पर जताया ना करो।
मुडेरों पर बैठा करते ये काठ के कबूतर,
चिट्ठियों के लिए उन्हे भगाया ना करो।
इम्तिहाँ लेती रहेगी हर परग ये जिंदगी,
आँखें नम करो पर इसे बताया ना करो।
गुनाह तो बहुत हुए है तुमसे भी सोचो,
हर ख़ताकी दरख्वास्त लगाया ना करो।
दास्ताँ है तो उसे लिखकर रखना कहीं,
कागज चुनकर हर रोज छिपाया ना करो।
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रहमत के फ़तवे (१४ – अप्रैल -२०१५)
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
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