मत-भेद कहाँ है रंगो मे…..
लिपटा रहता है अंगो मे…..!!!
दूर-दराज़ को पास बुला के….
चलता रहता है संगो मे…..!!!
जात-पात की आग भुला के….
मिलता रहता है पंगो मे…..!!
काबे-काशी को गले लगा के ….
लुटता रहता है दंगो मे….!!
श्वेत-श्याम का भेद मिटा के….
घुलता रहता है जंगों मे….!!!
©खामोशियाँ-2014