ज़िंदगी
रूबिक्स क्यूब
जैसी घूमती रहती।
लाल के इर्द गिर्द,
हरे रिश्ते उलझे रहते।
सफ़ेद शांत छुपा,
अकेले बैठा रहता।
पीला जिद्दी ठहरा,
नीले का पीछा करता।
जितना
सुलझाना चाहो,
उतना उलझती जाती।
अपने कुछ पास आते,
तो दूसरे उसे बिगाड़ देते।
– मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के – चर्चा मंच पर ।।
रुबीक्स क्यूब का बढ़िया वर्णन…. जिंदिगी की तरहा
बहुत बढ़िया लिखा है |
बढ़िया है
सुन्दर
वाह क्या बात है बहुत सुंदर रचना. पढ़ कर एक नहीं उर्जा सी आ गई मन में !